नमस्कार दोस्तों, मैं रितिका आज एक नया अनुभव लेकर आयी हूं।
ये Hindi Sex Story गरिमा की जीवन की सच्ची घटना है।
जो कहानी के रूप में आप लोगो के साथ शेयर कर रही है। तो चलिए गरिमा की कहानी प्यासी चूत को लगा पडोसी के लंड का चस्का ( Land Ka Chaska ) पढ़ते है।
आप लोगों का ज़्यादा टाइम ना लेते हुए मैं कहानी शुरू करती हूँ।
सबसे पहले मैं अपना और अपने परिवार का परिचय करवा दूं।
मैं गरिमा दिल्ली की रहने वाली हूं। मेरे परिवार में मेरे पति सेवानिवृत्त शिक्षक उमर लगभाग 40 साल, 2 बेटे, 2 बेटियां हैं।
मेरी दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है, और दोनों दूसरे शहर में रहती हैं।
मेरे दोनों बेटे जॉब करते हैं। एक बेटा इंदौर में, और दूसरा बेटा नॉएडा में रहता है।
दिल्ली में मैं और मेरे पति दोनों ही रहते हैं। मैं 40 साल की सीधी-सादी, संस्कारी, धार्मिक और पतिव्रता औरत थी।
मैं थी, इसलिए ही कह रही हूं। क्योंकि 6 महीने पहले समय ने ऐसी करवट बदली, कि आज की तारीख में मैं ना पतिव्रता हूं,
और ना मेरे में कुछ संस्कार बचे हैं।
मेरी सालो की तपस्या ऐसी टूटी, कि 6 महीनो में मैं कई गैर मर्दों से चुदवा चुकी हूँ।
मैं उनका बिस्तार गरम कर चुकी हूं। पहले शर्म, हया, और संस्कार मेरे गहन हुआ करते थे। मैं सिंपल साड़ी ही पहनती थी।
लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। ये बात शुरू होती है आज से कुछ 8 महीने पहले।
हमारे घर के बगल वाले घर के गुप्ता जी के घर नये किरायदार रहने आये थे।
शुरू-शुरू में हमारी उनसे कोई बात-चीत नहीं थी। ऐसे ही एक महीने से ज्यादा बीत गया।
उन लोगों से कॉलोनी के कोई भी लोग बात नहीं करते थे। मेरी भी उनसे कोई बात-चीत नहीं होती थी।
मुझे उनके बारे में ज्यादा कुछ भी नहीं पता था।
एक दिन मैं ठेले वाले से सब्जी ले रही थी। तभी पड़ोस की किरायेदार एक लड़की उमर यहीं 28-30 साल की होगी,
वो भी सब्जी लेने आएगी। सब्जी लेते-लेते उसने मुझसे बात-चीत की। तब मुझे पता चला उसका नाम पूजा था।
फिर उसने अपने परिवार के बारे में बताया। उसके परिवार में पूजा, उसका पति विजय, विजय का भाई,
और विजय के मामा जीत ये चार लोग रहते थे। उनका गारमेंट्स का बिजनेस था.
मैंने भी उसको अपने परिवार के बारे में बताया। पहली मुलाकात में हम दोनों एक दूसरे के परिवार से रूबरू हो चुके थे।
फिर आगे हम रोज़ ही बातें करते थे। धीरे-धीरे पूजा और मैं दोनों काफी घुल-मिल गए।
हम दोनों की उम्र में बहुत अंतर था, लेकिन हम दोनों की बॉन्डिंग दिन-ब-दिन मजबूत हो रही थी।
लगभाग एक महीने में हम दोनो पक्की सहेलियाँ बन गई। पूजा का हमारे घर आना-जाना शुरू हो गया।
कभी-कभी मैं भी उसके घर जाती थी। हम दोनों का दोपहर का समय एक दूसरे से गप्पे लड़ाने में बिताते थे,
कभी मेरे घर पे या कभी पूजा के घर पे। धीरे-धीरे पूजा मेरे सामने उसके शौहर के मामा जीत की बातें कुछ ज्यादा ही करने लगीं।
अब रोज़ ही पूजा का एक ही टॉपिक रहता उसके मामा जीत। पूजा उसके मामा जीत की खूब तारीफ करती थी।
जीत मामा ऐसे, जीत मामा वैसे पूजा ने उसे जीत मामा की तारीफों के पुल बांध दिए।
जीत मामा के बारे में कई बातें बताईं उसने।
अब धीरे-धीरे मेरे दिल और दिमाग में भी जीत की ही बातें घूमने लगा। एक दिन पूजा ने जीत की दर्द भरी xxxकहानी बताई,
कि कैसे जीत की बेगम उसको दगा देके किसी और के साथ चली गई। फ़िर जीत बिल्कुल पागलों जैसा हो गया।
उस दिन के बाद मुझे जीत पर बहुत दया आई। मैंने जीत को एक या दो बार ही देखा था।
उस रात सोते समय मुझे जीत की दर्द भरी कहानी याद आई। साथ ही उसका चेहरा भी मेरी आंखों के सामने था।
मैं सोच रही थी बेचारा जीत कितना अच्छा आदमी था, और उसके साथ कितना बुरा हुआ।
यहीं सब सोचते-सोचते मुझे नींद लग गई। रात में मेरी अचानक नींद खुली, और मैं उठ के बिस्तर पे बैठ गयी।
मैं पसीने से तरबतर थी, और गला पूरा सूखा हुआ था।
मैंने पानी पिया, और फिर अपना पसीना पोंछते-पोंछते मैं सोचने लगी हे भगवान ये क्या था?
असल में मैंने एक सपना देखा था। जिसमें मैं जीत के साथ थी। जीत ने मुझे बाहों में जकड़ रखा था।
फ़िर मैं जीत को बोली-
मैं: जीत तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ, लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ हूं तुम्हें खुशियां देने के लिए।
मैं प्यार से जीत की बाहों में झूल रही थी। जीत मुझे चूमते हुए मेरे कपडे उतार रहा था।
फिर उसने मुझे पूरी नंगी कर दिया, और मेरे नंगे बदन को चूम रहा था।
जीत भी पूरा नंगा हो गया, और फिर जीत ने अपना बड़ा लंड मेरी चूत में डाला, और मेरी बुर की चुदाई ( Bur Ki Chudai ) करने लगा।
अब मैं अपने आप को संभालते हुए बोली-
मैं (मन में): मैं ऐसा सपना कैसे देख सकती हूं?
मैं शर्म और हया से पानी-पानी हो गई थी। सुबह उठने के बाद दिन भर मेरे दिमाग में वही रात में देखा हुआ सपना घूम रहा था।
मैं शर्म से शर्मिंदगी जरूर हो रही थी, लेकिन दिल के किसी कोने में अजीब सी हलचल थी, जो मुझे उत्साहित कर रही थी।
इसके मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी। घर के काम निपटाने के बाद मैं पूजा का इंतजार कर रही थी।
काफ़ी देर तक इंतज़ार करने पर भी जब वो नहीं आई, तो मैं ही उसके घर चली गई।
मुझे जीत के बारे में सुनने की खुशी जो थी। फिर मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया।
दरवाज़ा खुला, और सामने जीत खड़ा था दरवाज़े पे। उससे नज़रें मिलती ही मैं रात के सपने में खो गई।
यहीं वो जीत है जिसके साथ सपने में मैं चुदवा रही थी।
उसको सामने खड़ा पा कर मेरी धड़कने तेज़ हो गई, और दिल में बेचैनी सी होने लगी।
फ़िर जीत ने बोला: अरे गरिमा जी, आप? आइए, अंदर आइए ना.
मैं सर झुका के अंदर चली गई, और सोफे पर बैठ गई। जीत भी सोफ़े पे आके बैठ गया, और मुझसे बातें करने लगा।
पहले उसने मेरा हाल-चाल पूछा।
मैंने बोला: सब ठीक है.
रात के सपने के कारण मैं उससे नज़र नहीं मिला पा रही थी। काफ़ी देर तक जीत मुझसे बातें करता रहा।
मुझे उससे बात करने में अंदर से शर्म और झिझक महसूस हो रही थी। फिर जीत उठा, और बोला-
जीत: गरिमा जी, आप बैठिए, मैं चाय बना के लाता हूँ।
मैंने मना किया, लेकिन वो नहीं माना। उसने बोला-
जीत: अरे आप घर आए, और बिना चाय पिए जाओगे तो हमें अच्छा नहीं लगेगा।
अभी पूजा होती है, तो वो जरूर आपके लिए चाय बनाती है, और आप पूजा को मना भी नहीं करते।
तब मैंने जीत से पूछा: वैसी पूजा है कहा?
तब जीत ने बताया: पूजा और बाकी घर के लोग 4 दिनों के लिए उनके गांव गए हैं।
पता नहीं पर मेरे मुँह से क्यों निकल गया “आप नहीं गए गाँव”? जीत उदास होके बोला-
जीत: नहीं गरिमा जी, मैं नहीं गया। गाँव से कुछ बुरी यादें जुड़ी हैं, इसलिए मैं गाँव नहीं जाता।
मैं समझ गई जीत कोन सी बुरी यादों की बात कर रहा था। मुझे अंदर ही अंदर बहुत बुरा लगा।
मैंने जीत को उदास कर दिया था। मैं मन ही मन अपने आप को कोसने लगी। बेचारा जीत फिर मेरे लिए चाय बना के ले आया।
मुझे जीत का स्वभाव बहुत अच्छा लगा। हसमुख और जिंदा दिल इंसान था वो।
उसके साथ बातें करके मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी।
मन तो यहीं कर रहा था, कि ऐसे ही जीत के साथ बैठी रहु, और ढेर सारी बातें करती रहु।
रात के सपने की याद आती ही थी और जीत को अपने सामने पाके मेरे जिस्म में अजीब सी सिहरन पैदा हो रही थी।
मेरा मन तो नहीं था घर जाने का, पर मन मार कर मुझे घर जाना पड़ा।
शाम को पति के साथ चाय की चुस्की लेते हुए मैं अपने पति से बोली-
मैं: सुनो जी, पड़ोस वाली पूजा 4-5 दिनों के लिए गांव गई है। उसके मामा अकेले हैं.
मेरे पति: अच्छा.
मैं: पूजा मुझे बोल के गई है उसके मामा के खाने का ख्याल रखने का।
पता नहीं पर क्यों पर मैंने अपने पति से झूठ बोला।
मेरे पति: ठीक है ना, उनको बुला लेंगे खाने पे।
मैं: अब पता नहीं रोज़-रोज़ वो आये या नहीं।
पति: बोल के देख लेंगे आगे उनकी मर्जी। अब वो आये चाहे ना आये.
मैं: सही कहा आपने. अगर आए तो ठीक, नहीं तो हम खाना पैक करवा के उनको दे आएंगे।
पति: हा ये भी सही रहेगा.
रात में लगभाग 8 बजे मैंने खाना बनाया। मेरे पति जीत को बुलाने के लिए उसके घर पे गए।
जीत और मेरे पति के आने के बाद हम तीनों ने साथ में खाना खाया।
और फिर बैठ के बहुत सारी बात-चीत की। जीत के जाने के बाद मेरे पति मुझसे बोले-
पति: गरिमा ये जीत मिया है बहुत ही कमाल के स्वभाव वाले। कितने मीठे हैं.
पति के मुँह से जीत की तारीफ़ सूरज के पता नहीं क्यों पर मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ।
फिर रात में मैं जीत को और कल रात में देखे सपने को सोचते हुए सो गई।
ये कहानी आप readxxxstories.com पर पढ़ रहे थे। उम्मीद करता हूँ आप लोगो को पसंद Hindi Sex kahani आयी होगी।
इससे आगे की कहानी अगले भाग में आएगी।
अगला भाग: प्यासी चूत को लगा पडोसी के लंड का चस्का ( Land Ka Chaska 2 )