November 21, 2024
बीवी की सहेली को चोदा

मित्रो,आज में आपके साथ अपनी सच्ची कहानी सांझी करने जा रहा हूँ आज की कहानी में बतऊँगा कैसे मेने अपनी बीवी की सहेली को चोदा जब उसका पति काम से बहार गया हुआ था और उसके अकेले होने का फायदा उठाया।

मित्रो आज में आपके साथ अपनी सच्ची कहानी सांझी करने जा रहा हूँ आज की कहानी में बतऊँगा कैसे मेने अपनी बीवी की सहेली को चोदा जब वो काम से आभार गया हुआ था और अकेले होने का फायदा उठाया।

दोस्तों मेरा नाम विजय लाल है, मेरी उम्र इस समय 45 साल है। मैं, मेरी पत्नी और मेरा बेटा।।। बस इतना ही मेरा परिवार है।

कुछ समय पहले मेरी पत्नी की एक महिला से दोस्ती हुई। वह महिला हमारे मोहल्ले की दूसरी गली में रहती है। दोस्ती की वजह ये थी कि मेरी पत्नी और उस महिला दोनों का नाम कविता है।

उस कविता की दो बेटियां हैं, बड़ी बेटी दीपिका की उम्र 21 साल और छोटी बेटी कोमल की उम्र 19 साल है। बच्ची दुबली-पतली और सांवली है। बड़ी लड़की दीपिका भी पतली है लेकिन गोरी है, दिखने मैं भी खूबसूरत है और अभी BA कर रही है ।

कविता के पति पहले यहीं रहते थे और पति-पत्नी दोनों छोटे-मोटे काम करके अपना जीवन यापन करते थे, इसलिए घर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
फिर कविता के पति को विदेश जाने का मौका मिला तो वह पैसा कमाने विदेश चला गया।

वैसे तो हम एक दूसरे के घर आया जाया करते थे। लेकिन जब कविता के पति विदेश गए तो मुझे कविता में कुछ खास लगने लगा। भले ही वह रंग-रूप या शारीरिक बनावट में मेरी पत्नी की तुलना में कहीं नहीं थी, लेकिन पराई महिला तो पराई महिला होती है। भले ही वह अच्छी न हो, उसके चूचे, उसकी गांड, उसकी योनी हमेशा आपको उसकी ओर आकर्षित करती है।

कई बार मेरे मन में यह विचार आया कि मैं कविता को थोड़ा देख लूं, उसका पति उसके पास नहीं है, तो वह भी रात को बिस्तर पर करवट बदलती होगी। अगर यह किसी तरह मान गयी , तो अपने को बाहर मुँह मारने का मौका मिल जाएगा।

हालाँकि मैं उसके घर कम जाता था, मैं अपने काम में व्यस्त रहता था, लेकिन कभी-कभी मैं आता था, कभी-कभी वह भी आती थी।

अब उसकी मेरी पत्नी से अच्छी दोस्ती हो गई थी, वह मेरी पत्नी को बहन और मुझे जीजा कहकर बुलाती थी। लेकिन मैंने कभी साली कहकर उसके साथ मजाक नहीं किया, मैं थोड़ा रिजर्व रहता था। हां, मैं उनकी बेटियों के साथ हंस बोल लेता था।

उसके पति के विदेश चले जाने के बाद घर के कई कामों में उन्होंने कई बार मेरी मदद ली, लेकिन मैंने खुद कभी आगे बढ़कर कुछ नहीं किया। मेरी पत्नी मेरे और कविता के बीच की कड़ी थी। सारा काम, बातचीत मेरी पत्नी के द्वारा ही होता था।

लेकिन एक बात जो मैं नोटिस कर रहा था कि कविता का व्यवहार अब बदलने लगा था। जब भी उन्हें मौका मिलता था तो वह मुझे जीजा कहकर बुलाती थीं और खूब मजाक करती थीं।

मुझे अक्सर ऐसा लगता था कि वह अपनी आँखों से, अपने शब्दों से और अपने हाव-भाव से कहना चाहती थी कि जीजाजी, हिम्मत करो और मुझे पकड़ लो, मैं आपको ना नहीं करूंगी।

लेकिन मैं उसे अपनी पत्नी के सामने कैसे पकड़ सकता था।

वो ये भी समझती थी कि जब तक हम अकेले नहीं मिलते, हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं बन सकता। लेकिन हमें अकेले मिलने का मौका ही नहीं मिल रहा था।

हमारी दोस्ती या यूँ कहें कि दिल में छुपा प्यार यूँ ही चल रहा था। हम दोनों के दिल में तड़प थी। मैं कम तड़प रहा था, वो ज़्यादा तड़प रही थी।

वह कई बार कह भी चुकी थी- जीजाजी, आपके पास कार है, मुझे गाड़ी चलाना सिखा दीजिए। जीजा जी किसी दिन हम दोनों मूवी देखने चलते हैं।

काश बारिश हो रही होती और हम दोनों जीजा-साली गाड़ी में कहीं दूर जाते घूमने।

उसने ये सारी बातें मेरी पत्नी के सामने बातचीत में कही थीं और ऐसी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि शायद वो मुझसे अकेले में मिलने का बहाना ढूंढ रही है।

फिर एक दिन उन्होंने बड़ा बयान दिया।

यूँ हुआ कि जब हम बाज़ार गए थे तो वह भी अपनी दोनों बेटियों के साथ वही मिली। इसलिए औपचारिकता के तौर पर हमने उन्हें रात के खाने पर आमंत्रित किया। वह जल्दी से राजी हो गए।

हम एक मिठाई की दुकान पर गए, जिसके ऊपर उनका रेस्टोरेंट था। सब कुछ शाकाहारी था। हम वहीं बैठे और हमने खाना खाया।

अब उनकी बड़ी बेटी मेरे साथ बैठी थी, जबकि कविता, उनकी छोटी बेटी और मेरी पत्नी मेरे सामने बैठी थीं।

दीपिका वैसे भी मुझे बहुत पसंद करती थी।

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हम दोनों चुपचाप बैठ कर खाना खा रहे थे, वो कविता से बोली- देखो कैसे दोनों बिल्कुल एक ही अंदाज में खाना खा रहे हैं, जैसे दीपिका तुम्हारी ही बेटी हो।

मैंने कहा- हां, मेरी एक बेटी है।

अब मैं और क्या कहूं।

लेकिन तभी कविता बोली- ये आपकी कैसे हो सकती है, क्या हम कभी मिले हैं?

मैं सुन्न हो गया हूं। नहीं मिले मतलब सेक्स नहीं किया। मैंने सोचा- अरे भाई ये तो चुदने के चक्कर में है, और मैं ऐसे ही मारा जा रहा हूँ।

लेकिन उस वक्त मैंने सिर्फ हाथ उठाकर आशीर्वाद देने का नाटक किया कि दीपिका मेरी बेटी है जो मेरे आशीर्वाद से पैदा हुई है।

तो दीपिका ने कहा- मौसा जी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपको पापा कहूंगी।

अब उस बिटिया की इस प्यारी सी विनती को मैं मना नहीं कर सका, मैंने कहा- हां बेटा, मुझे खुशी होगी, मेरी कोई बेटी नहीं है, तुम मेरी बेटी बन जाओ।

उस दिन के बाद दीपिका हमेशा मुझे पापा कह कर बुलाती थी। मगर छोटी बेटी कभी पापा तो कभी मौसा जी कह देती थी।

उसके साथ मेरा रिश्ता ठीक ठाक सा ही था क्योंकि वो चुप ज़्यादा रहती थी।

फिर एक दिन दीपिका ने मुझसे मेरा फोन नंबर मांगा, उसके बाद वो मुझे कभी फोन करती, कभी सुबह मैसेज करती और कभी मैं भी उसे अच्छे मैसेज भेजा करता था जैसे कोई पिता और बेटी करते हैं।

एक दिन मैं और मेरी पत्नी उनके घर गए, रविवार का दिन था और वे सब बाल धोए बैठे थे।
फिर दीपिका तेल ले आई और तीनों मां-बेटी एक-दूसरे के सिर पर तेल लगाने लगीं।

मैंने भी बैठे-बैठे ही कह दिया- अरे वाह दीपिका, तुम तेल तो बहुत अच्छा लगाती हो!
वह बोली- पापा मैं आपका भी लगा दूं?
मैंने कहा हां लगा लो

जब उनका निबट गया तो दीपिका मेरे पास तेल की बोतल लेकर आई। मैं उसके सोफे पर बैठा था, वो मेरे पीछे आई और एक कटोरी से तेल लेकर मेरे बालों में लगाने लगी।

“आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…” बेटी ने अपने कोमल हाथों से सिर पर तेल लगाया तो क्या खुशी हुई।

कविता बोली- जीजा जी, आपका तेल लगा दूं?

उसकी बातों का एक इशारा मुझे समझ में आया पर मैंने कहा- नहीं थैंक्स, बेटी बहुत अच्छी लग रही है।

उसके बाद हमने उनके घर डिनर किया और जब हम वापस आए तो अपनापन दिखाने के लिए कविता ने पहले तो मुझे नमस्ते बोली और फिर आगे बढ़कर मुझे गले से लगा लिया।

लेकिन मुझे गले लगाते हुए उसने अपना मम्मा को अच्छी तरह से मेरे बगल में रगड़ा और मेरी तरफ देखकर शरारत से मुस्कुराई।
वह मुझे साफ से साफ संकेत इशारा दे रही थी कि आओ मुझे पकड़ लो लेकिन मैं ढीला चल रहा था।

मैंने सोचा कि अब एक और मौका मिला तो कविता से बात करूंगा।

फिर एक दिन मौका मिला, वो हमारे घर आई थी, मेरी बीवी किचन में थी। मैंने पूछा- अरे कविता, तुमने मेरा मोबाइल नंबर लिया था, लेकिन फोन नहीं किया?

वो बोलीं- वैसे भी कम बात करते हो, पता नहीं फोन पर बात हो भी या नहीं।

मैंने कहा- अरे नहीं, मैं तो बल्कि इंतज़ार कर रहा था कि कभी हैलो हाई, नमस्ते, गुड मॉर्निंग, आई लव यू, कुछ तो मेसेज करो।

मेरी बात सुन कर वो खूब हँसी, बोली- ठीक है, अभी करती हूँ।

और अगले ही दिन सुबह उनका मैसेज आया ‘गुड मॉर्निंग’। जवाब में मैंने भी उन्हें गुड मॉर्निंग मैसेज भेजा। और एक ही दिन में हम दोनों ने एक दूसरे को करीब 40 व्हाट्सएप मैसेज भेजे।

मैं जितना खुल कर चला, वह उससे भी ज्यादा खुलकर चली और जीजा-साली के रिश्ते की सारी इज्जत और मर्यादा तोड़कर हम दोनों ने खुलकर एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार किया। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर आपने नहीं कहा तो मैं खुद कहने वाली थी।

अब तो हो ही गया प्यार का इजहार, फिर बचा ही क्या है। वह मेरे साथ पूरी तरह से सेट थी। मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे कि यार कमल है, 45 की उम्र में भी माशूक पटा ली।

उसके बाद हम अक्सर फोन पर बात करते थे, दो-तीन दिन में ही बातें शीशे की तरह साफ हो गई थीं। दोनों ने एक-दूसरे से कहा कि अब जब भी मिलेंगे तो अकेले ही मिलेंगे और उसी दिन सारी हदें पार कर देंगे।

मैंने सोचा अब तो जाना ही है माशूक के पास तो पूरी तैयारी के साथ चलते हैं। मैंने अपने काम से पहले ही बुधवार को एक दिन की छुट्टी ले ली थी।

लेकिन मंगलवार को मैंने कुछ और काम भी किए। मैंने *** की आधी गोली खाली। जब आप इस गोली को खाने के बाद करते हैं, तो आपके कहने पर आपका लंड खड़ा हो जाता है, और वो भी सख्त, पत्थर जैसा सख्त। इतना तय है कि यह गोली यूरिक एसिड को बढ़ाती है। लेकिन इसका असर 2-3 दिनों तक रहता है।

बुधवार की सुबह मैंने तेज चाय के साथ अफीम की एक मटर के दाने जितनी गोली निगल ली। अब सफेद गोली लिंग को सीधा रखने के लिए और काली देर तक न झड़ने के लिए।

11 बजे मिलने का प्रोग्राम था। लेकिन मैं 10 बजे से पहले हर तरह से तैयार था। करीब पौने 11 बजे मैंने कविता को फोन लगाया और पूछा- हां साली कैसी हो?

उसने कहा- बहुत अच्छा, तुम सुनाओ।

मैंने पूछा- सोच रहा था, सुबह-सुबह तुम्हें देख लेता तो पूरा दिन अच्छा बीतता।

उधर से बोलीं- फिर आ जाओ कौन रोक रहा है, यह भी तो तुम्हारा घर है।

मैं उड़ता हुआ उनके घर पहुंचा। गेट खोलकर अंदर गया, घर के अंदर किचन में कुछ कर रही थी। मैंने इधर-उधर देखा, घर में और कोई नहीं था। लेकिन फिर भी मैं किचन में गया, उन्हें हैलो कहा, उनसे बच्चों का हालचाल पूछा।

फिर पूछा- बच्चे कहां हैं।

उसने कहा- बड़ी कॉलेज, छोटी स्कूल। मैं घर में अकेली हूँ।

मतलब जो मैं पूछना चाहता था वो उसने खुद बता दिया।

वह गैस पर चाय बना रही थी, मैं जाकर उसके पीछे खड़ा हो गया। दिल चाह रहा था पीछे से बाहों में भरने की पर फिर भी दिल में एक डर था। लेकिन फिर भी मैंने हिम्मत जुटाई और उसे अपनी बाहों में भर लिया।

वह एकदम चौंक गई- अरे जीजाजी, यह क्या कर रहे हो?

वो गुस्सा न हुई तो मेरा हौसला भी बढ़ गया, मैंने झट से उसके गले में दो बार चुम लियाँ और उसे कस कर गले से लगा लिया- उम्म्ह… आह… हाय… ओह… मेरी कविता, अब सबर नहीं होता यार!

और मैंने उसका चेहरा घुमाया, उसकी गर्दन और कंधों को चूमा, और उसके गाल पर भी चूमा।

वह मुस्कुराई और बोली-आप तो बड़े बेशर्म हो, छोटी साली तो बेटी जैसी होती है।

आगे की कहानी: बीवी की सहेली को चोदा उसके पति की गैर मोजुदगी मे भाग-2

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